संडे का दिन था, इसलिए सुबह सुबह कोई हड़बड़ी नहीं थी. सात बज चुके थे और सब बस सो कर ही उठे थे. अखबार वाला भी संडे को देर से ही आता था. सबको चाय का प्याला थमा कर सुकून से वह बालकनी में अपनी चाय ले कर बैठी ही थी कि सास की तीखी आवाज़ आयी “बहु, तुम्हारी छोटी बहन का रिश्ता कहीं पक्का हुआ या नहीं?” दबी सी जुबान में उसने कहा, “नहीं माँजी, अब तक तो नहीं। दो-एक जगह बात चल रही है ““अरे, हमने जो रिश्ता बताया था, वही जो गवर्नमेंट डिपार्टमेंट में बड़ा बाबू है, वो तो कितना अच्छा है। अब सबका भाग्य तुम्हारी तरह थोड़ी ही हो जाएगा, जो इतने बड़े घर में इतने अच्छे लड़के से शादी हो जाए। और फिर तुम्हारी बहन तो इतना अच्छा कमाती ही है, लड़का थोड़ा कम भी कमायेगा तो क्या बिगड़ जाएगा। अब पैसा ही सब कुछ थोड़े ही न है। जब इतना पैसा नही है तो कोर्ट मैरिज करा दो। “ज्यादा ऊँचे ख्वाब देखोगे तो कीमत भी तो ज्यादा देनी पड़ेगी” इतना लालच भी ठीक नहीं, कहते कहते माँजी के होठों पर एक कुटिल सी मुस्कान खेल गयी।
उसने जवाब दिया कि “सही कहा मांजी आपने, अब मेरी शादी की कीमत चुकाने में तो जितनी पिताजी की जमा पूंजी थी, सब ख़त्म हो गयी। पिताजी के गांव की जमीन तक बिक गयी, क्यूंकि उन्होंने तब भी यही सोंचा की पैसा ही सब कुछ नहीं है, उनको बेटी की खुशी के लिए सब मंजूर था। इसलिए अब छोटी बहन की शादी में देने के लिए कुछ भी नही बचा। शायद पिताजी को उसकी शादी उससे कम कमाने वाले लड़के से ही करनी पड़ेगी। काश आपने भी अपने बेटे की शादी के वक़्त यही सोंचा होता की पैसा ही सब कुछ नहीं है”, उसके मन का आक्रोश उसके होठों तक आ गया था। माँजी ने गुस्से में कहा कि “हमें तो दहेज़ के साथ साथ कमाऊ लड़की भी मिल रही थी, पर हमने कभी पैसों को एहमियत नहीं दी। हमने तो सोंचा था कि घरेलु लड़की होगी तो ज्यादा संस्कारी होगी, पर मेरा भाग्य इतना अच्छा कहाँ। सुबह सुबह बस तुम्हारे मुँह से यह खरी खोटी सुननी ही बाकी थी। मेरा बेटा भी तो जोरू का ग़ुलाम हो गया, नहीं तो तुम्हारी कभी हिम्मत नहीं होती मुझे यह सब कहने की“, कहते कहते वो दहाड़ें मार कर रोने लगी।
शोर सुन कर उसका पति अपने कमरे से बहार आया। माँ को रोते हुये देख कर उसने पूछा,“क्या हुआ माँ? यह सुबह सुबह क्यों शोर मचा रखा है। उसने दबी हुई सी आवाज में कहा “माँजी वो डॉक्टर नहीं, हॉस्पिटल में चपरासी हैं”। और मेरे घर के हालत इतने भी बुरे नही हैं कि किसी भी लड़के से उसकी शादी के बात करने लगे। उसकी भी तो कुछ इच्छाएं होंगी। जब वो इतना कमाती है तो ऐसे ही किसी लड़के से शादी नही कर लेगी और न ही मैं अपने घर में इस रिश्ते के बारे में घर में बताऊँगी। इतना बोलते ही उसकी सास उसको थप्पड़ मार देती। गुस्से में उसका पति कहता है कि “ख़बरदार जो दुबारा जबान चलाई तो…”। तुममे जरा भी संस्कार नही बचे, इतनी देर से देख रहा हूँ, खड़े होकर जवान चलाये जा रही है। सिसकियों के बीच कभी वह अपने भाग्य के बारे में सोंचती तो कभी सोंचती कि क्या पैसा ही सब कुछ होता है। आज मैं अपने पैरों पर खड़ी होती, मेरे पास खुद के पैसे होते तो मैं यह सब बिल्कुल बर्दाश्त नही करती…
वह अपने कमरे में जाकर इन सब चीजों के बारे में सोचने लगी। तभी उसकी बहन का फोन आया। उसने थोडी देर इधर उधर की बात की फिर हिचकते हुये अपनी बड़ी बहन को बताय कि वह एक लड़के को पसंद करती है, और दोनों शादी करना चाहते है। लड़के के बारे में सब कुछ जानने के बाद उसने अपनी माता-पिता से बात की और उनको बताया कि लड़का बहुत अच्छे घर से है , अच्छी नौकरी करता है। उसके परिवार वालो को कोई आपत्ति नही थी। उनके सामने बस ये समस्या थी कि उनके पास इतनी जमा पूंजी नही बची कि वह अपनी दूसरी बेटी की शादी धूम धाम से कर पाए। उसके मन में विचार आया कि क्यों न इनकी कोर्ट मैरिज कर दी जाये। उसने नेट पर कोर्ट मैरिज बारे में सर्च किया। घर वालों से उसने इस बारे में बात की और लड़के के घर में भी इस बारे में बात की। किसी को कोई आपत्ति नही थी। उसने नेट पर Aapka Advocate के बारे में पढ़ा। फिर उसने Aapka Advocate की Website पर जाकर Phone Consultation ली। उनके Advocate ने पूरी बात को सुना और उसको कोर्ट मैरिज का सही तरीका बताया। उसकी बहन की शादी को एक साल पूरा हो गया है । दोनों अपनी जीवन में बहुत खुश है।
दोनों को खुश देख कर वह खुश तो है पर उसका अपना जीवन नरक से बत्तर हो गया रोज अपने पति, सास-ससुर की गलियां खाती है। उसको कुछ समझ नही आ रहा था। वह उस घर में रह भी नही पा रही थी। और ऐसा कोई काम भी नही करना चाहती थी, जिससे उसके मायके वालों को किसी की भी सुननी पढ़े। उसने यह बात अपनी छोटी बहन को बताई। उसने सलाह दी कि एक बार वह फिर से Aapka Advocate में Phone Consultation ले। और इस विषय पर उनसे सलाह ले। उसने Appointment ली और उनके Advocate को पूरी समस्या बताई। उनके Advocate ने उसको समझौता करने की सलाह दी। फिर Advocate ने दोनों पक्षों की बात सुनी। और दोनों के बीच में समझौता कराया।